‘तुम्हारा धर्म क्या है’

बहुत आसान था
तुम्हें धर्म के नाम पर ठगना
इतना आसान
जैसे किसी बच्चे को
भूत से डराकर सुला देना,
शायद
वो भी इतना आसान नहीं था,
बच्चे भी आजकल
सवाल पूछ लेते हैं
पलटकर,
तुम नहीं पूछते
कुछ भी
सिवाय इस के कि
‘तुम्हारा धर्म क्या है’

मैंने तुम्हारे बीच जन्म लिया
जिस से जन्म लिया
वो आज भी
उसी धर्म में आस्था रखती है
जिसे तुम कहने लगे हो
कायरता,
जिस ने मुझे स्कूल भेजा
और कर्ज़ लिए
वो मरते-मरते भी बुदबुदाता रहा
तुम्हारे सबसे पवित्र शब्द,
जिस जगह बड़ा हुआ
वहाँ हर तरफ़
तुम्हारी संस्कृति थी
उसमें डूबा
उस से उबरा
पास से
दूर से
भीतर और बाहर
विश्वास और भ्रम
हर तरह से मैंने
स्वयं से गुजरते हुए
तुम्हें जाना

मैंने तुमसे पूछे सवाल
तुम डरे
फिर डराया मुझे
मैंने किताबों में ली शरण
जिन्हें तुम पवित्र कहते हो
पर पढ़ते नहीं,
मैंने देखा
तुम अपने पुस्तकालय पर
ताला लगाकर
उस पर सिंदूर मले जा रहे हो,
मैं तुम्हारी उस मूर्खता पर
हथौड़ा न मारता
तो क्या करता

मैंने जितना पढ़ा
तुम्हारे धर्म को
उतनी बार पकड़े
तुम्हारे झूठ,
जब मैं मिला
तुम्हारे विद्वानों से
मैंने जाना
तुम्हारे बाज़ार में
अब उनकी तख्तियाँ बहुत बिकती हैं
और किताबें बहुत कम,
मैं जितना चढ़ा
उस चढ़ाई पर
मैंने उतना जाना
तुम्हारे आलस्य को,
विज्ञान से पहले
तुम्हारे धर्म ने बताया मुझे
तुम कितना कम जानते हो
जीवन के बारे में
और उस से भी कम
अपने धर्म के बारे में,
जितना मैंने तुम्हें पहचाना
उतना पाया
तुम भी
दूसरे धर्मों की तरह
आस्था से अधिक
क्रिया के दास रहे,
तुमने बंद कर दिए
सारे सुधार
और अपनी भक्ति को
कठोरता के घूँट पिलाते रहे

धर्म की रक्षा के नाम पर
तुम्हें बाँटे गए
घृणा के पर्दे
फिर तुमने
उजाले को
अपनी खिड़कियों पर ही रोक दिया,
तुम्हें बाँधे गए
प्रशंसा के पट्टे
संस्कृति की रक्षा के नाम पर
और तुम
जयमाला समझ के
उन्हें पहनते रहे

तुम मेरे माँ और पिता
भाई और बहन रहे
तुम्हीं सबसे पहले दोस्त
और सबसे अंतिम शत्रु थे
मैंने तुमसे प्रेम किया
तुम से धोखे खाए
बाकी सब
जीवन में थोड़ी देर से आए

मैं तुम्हें इतना जानता हूँ,
इतना जानता हूँ
तुम्हारी कमज़ोरियों को
अगर चाहता
तो नींद में उठ कर भी ठग लेता तुम्हें
मगर
मैं तुम्हें
ठग नहीं सकता
न किसी और को
तुम्हें ठगते हुए
देख पाता हूँ

इसी कारण
प्रिय हूँ मैं तुम्हारा
इसी कारण
तुम्हारा शत्रु भी
किंतु
न तो मैं पहला यक्ष हूँ
न आख़िरी विभीषण

विभीषण
जो राम की दृष्टि से
शुभचिंतक है
किंतु रावण की दृष्टि से
कुलद्रोही

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